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आज़ मुझे बुखार है

दीपावली के दिन है। भाग दौड़ तो रहती ही है, घर से कॉलेज कॉलेज से घर, और घर पर भी दो-चार इधर-उधर के काम।   मौसम एक  चुनाव का भी है, यहां देवली में उपचुनाव  की तारीख घोषित हो चुकी है। हम जा रहे हैं कि दीदी सुनीता बैसला जी को टिकट मिले, चुनाव लड़े और इस सीट को निकाले।   लेकिन यहां लोकल स्तर पर इतनी सारी गुटबाजी और दुरभीसन्धियां है कि, कब किसको टिकट मिल जाए, यह कहा नहीं जा सकता।  दीदी अपना पूरा प्रयास कर रही है, संगठन में उनकी पकड़  उनकी छवि की वजह से है, दोनों ही प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी उनका सम्मान करती है।  व्यक्ति स्वच्छ हो, साधारण तौर पर जमीन से जुड़ा हुआ हो, और वह जहां भी कम करें वहां  उसकी नेक नियति और अनुशासन झलके तो छवि अपने आप ही स्वच्छ और निर्मल होती चली जाती है। और इस स्वच्छता का प्रभाव दूर तक पड़ता है, ऐसा मैंने दीदी के व्यक्तित्व में  देखा है।   यहां ग्राउंड पर भी जितने लोगों से मिलते हैं, वह सारे लोग  दीदी की तारीफ करते हुए नहीं थकते है। दीदी बैसला का उठना बैठना चलना, बातों को ध्यान से सुनना और रेस्पॉन्ड करना वातावरण में अलग ही तरह की गंभीरता और सहजता पैदा कर देता है। समय के अ

दीपावली की सफाई

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घर में दीपावली की सफाई चल रही है।   कोई 7 साल बाद घर में पेंट हो रहा है। पेंट को लेकर मेरा कोई विचार नहीं था, लेकिन भाई पुखराज ने  यह बीड़ा उठा लिया, और बार बार पुश करके ये काम शुरू करवा दिया।  वो हैदराबाद रहता है, लेकिन घर का छोटा और समझदार बच्चा है, तो उसकी बात को हर कोई सीरियस लेता है।  सफाई के माहौल मे जब सामान बिखरा होता है, तब घर की स्त्रियों के लिए बड़ी चुनौती होती है कि आखिर दाना पानी कैसे बनाये, बच्चों को पढ़ने कहाँ बैठाये। बच्चे भी मजे करते है, छोटी छोटी चीजों से खेलते कूदते, क़भी टूशन स्किप करते है, तो क़भी टीवी चला कर घंटो तक बैठे रहते है।  एक बात तो है पत्नी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका मे होती है, ये सफाई के दिनों मे ही मालूम पड़ता है। आदमी तो ढोलते ढोलते भी खुद को मेहनती ही जताता है, जाकिर ( कॉमेडियन ) सही कहता है, इतना तो इस दुनियाँ मे काम ही नही है जितना मर्द लोग बताते है )